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अन्नपूर्णा चालीसा: भक्तों के लिए आशीर्वाद और समृद्धि का स्रोत

by Satnami Times Team
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अन्नपूर्णा चालीसा एक प्रसिद्ध हिन्दू भक्ति गीत है, जिसे विशेष रूप से देवी अन्नपूर्णा की पूजा के लिए गाया जाता है। देवी अन्नपूर्णा को खाद्य, पोषण और समृद्धि की देवी माना जाता है, और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्त अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करते हैं। इस चालीसा का महत्व भारतीय समाज में बहुत गहरा है, क्योंकि यह न केवल मानसिक शांति और समृद्धि की कामना करता है, बल्कि अन्न की कमी को दूर करने की भी प्रार्थना करता है।

अन्नपूर्णा देवी का परिचय

अन्नपूर्णा देवी का स्वरूप अत्यंत पवित्र और आदरणीय है। उन्हें “अन्नपूर्णा” के नाम से पूजा जाता है, जो “अन्न” (खाद्य) और “पूर्णा” (पूरा करने वाली) का संगम है। देवी अन्नपूर्णा वह हैं जो अपने भक्तों को अन्न, भोजन और पोषण प्रदान करती हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार, देवी अन्नपूर्णा का वास विशेष रूप से काशी (वाराणसी) में है, और वहां स्थित अन्नपूर्णा मंदिर को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस मंदिर में देवी की पूजा हर दिन की जाती है और यहाँ हजारों भक्त अपनी आस्था लेकर आते हैं।

अन्नपूर्णा चालीसा का महत्व

अन्नपूर्णा चालीसा में कुल 40 श्लोक होते हैं, जो देवी अन्नपूर्णा के गुणों और उनकी कृपा को लेकर होते हैं। यह चालीसा भक्तों के दिलों में आस्था, श्रद्धा और भक्ति को प्रगाढ़ करता है। अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में अन्न की कमी नहीं होती और उसकी हर आवश्यकता पूरी होती है। यह चालीसा विशेष रूप से उन लोगों के लिए कारगर माना जाता है, जो आर्थिक संकट से जूझ रहे होते हैं और जिन्हें जीवन में सुख-समृद्धि की आवश्यकता है।

चालीसा का गायन न केवल शारीरिक भूख को संतुष्ट करता है, बल्कि यह आत्मिक शांति और मानसिक संतुलन भी प्रदान करता है। अन्नपूर्णा चालीसा के माध्यम से व्यक्ति देवी अन्नपूर्णा की कृपा प्राप्त कर अपने जीवन में हर प्रकार की समृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है।

अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ कैसे करें?

  1. स्थान का चयन: चालीसा का पाठ करने के लिए एक पवित्र और शांति का स्थान चुनें। यह घर के मंदिर में या पूजा कक्ष में किया जा सकता है।
  2. स्नान और पवित्रता: पाठ से पहले नहा धोकर शुद्ध अवस्था में बैठें। साफ कपड़े पहनें और शुद्ध मन से पूजा की तैयारी करें।
  3. दीप जलाना: पूजा स्थल पर दीपक और अगरबत्तियां जलाएं। इससे वातावरण शुद्ध और पवित्र बनता है।
  4. चालीसा का पाठ: अन्नपूर्णा चालीसा के 40 श्लोकों का पाठ करें। इसे एक स्वर में या मानसिक रूप से भी पढ़ा जा सकता है।
  5. प्रार्थना और अर्पण: पाठ के बाद देवी से आशीर्वाद की प्रार्थना करें और उनके प्रति आभार व्यक्त करें। उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विश्वास और श्रद्धा से पूजा अर्पित करें।

अन्नपूर्णा चालीसा के लाभ

  1. आर्थिक समृद्धि: यह चालीसा आर्थिक संकटों को दूर करता है और व्यक्ति को समृद्धि और धन की प्राप्ति कराता है।
  2. भोजन की कमी से मुक्ति: अन्नपूर्णा देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में अन्न की कभी कमी नहीं होती और हमेशा पर्याप्त भोजन मिलता है।
  3. शांति और संतुलन: मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त होता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है जो मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं।
  4. सुख-शांति का अनुभव: अन्नपूर्णा चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

अन्नपूर्णा चालीसा का महत्व

जो व्यक्ति रोज माँ अन्नपूर्णा की चालीसा का पाठ करता है, उसे माँ अन्नपूर्णा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। माँ अन्नपूर्णा की चालीसा पढ़ने से उसके घर में कभी भी धन और धान्य की कमी नहीं होती है। माँ अन्नपूर्णा का चालीसा पढ़ने से माँ अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है उसे कभी भी दुःख और दरिद्रता छू भी नहीं सकती है और उनके घर हमेशा धन धान्य से भरे रहते है। तो आइए पढ़ते है माँ अन्नपूर्णा की चालीसा।

अन्नपूर्णा चालीसा लिरिक्स

अन्नपूर्णा चालीसा एक ऐसा स्तोत्र है जिसमें देवी की महिमा और उनके अनंत आशीर्वादों का गुणगान किया गया है। यह चालीसा विशेष रूप से उन लोगों के लिए शुभ मानी जाती है जो आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और समृद्धि की कामना रखते हैं। देवी अन्नपूर्णा को अन्न और समृद्धि की देवी माना जाता है। अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने से जीवन में धन, अन्न, और समृद्धि की प्राप्ति होती है और भक्तों के घर में कभी अन्न का अभाव नहीं होता।

अन्नपूर्णा चालीसा दोहा

विश्वेश्वर पदपदम की रज निज शीश लगाय ।

अन्नपूर्णे, तव सुयश बरनौं कवि मतिलाय ।

अन्नपूर्णा चालीसा चौपाई

नित्य आनंद करिणी माता, वर अरु अभय भाव प्रख्याता ।

जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी, अखिल पाप हर भव-भय-हरनी ।

श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि, संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि ।

काशी पुराधीश्वरी माता, माहेश्वरी सकल जग त्राता ।

वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी, विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी ।

पतिदेवता सुतीत शिरोमणि, पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि ।

पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा, योग अग्नि तब बदन जरावा ।

देह तजत शिव चरण सनेहू, राखेहु जात हिमगिरि गेहू ।

प्रकटी गिरिजा नाम धरायो, अति आनंद भवन मँह छायो ।

नारद ने तब तोहिं भरमायहु, ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु ।

ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये, देवराज आदिक कहि गाये ।

सब देवन को सुजस बखानी, मति पलटन की मन मँह ठानी ।

अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या, कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या ।

निज कौ तब नारद घबराये, तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये ।

करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ, संत बचन तुम सत्य परेखेहु ।

गगनगिरा सुनि टरी न टारे, ब्रहां तब तुव पास पधारे ।

कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा, देहुँ आज तुव मति अनुरुपा ।

तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी, कष्ट उठायहु अति सुकुमारी ।

अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों, है सौगंध नहीं छल तोसों ।

करत वेद विद ब्रहमा जानहु, वचन मोर यह सांचा मानहु ।

तजि संकोच कहहु निज इच्छा, देहौं मैं मनमानी भिक्षा ।

सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी, मुख सों कछु मुसुकाय भवानी ।

बोली तुम का कहहु विधाता, तुम तो जगके स्रष्टाधाता ।

मम कामना गुप्त नहिं तोंसों, कहवावा चाहहु का मोंसों ।

दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा, शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा ।

सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये, कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये ।

तब गिरिजा शंकर तव भयऊ, फल कामना संशयो गयऊ ।

चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा, तब आनन महँ करत निवासा ।

माला पुस्तक अंकुश सोहै, कर मँह अपर पाश मन मोहै ।

अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे, अज अनवघ अनंत पूर्णे ।

कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ, भव विभूति आनंद भरी माँ ।

कमल विलोचन विलसित भाले, देवि कालिके चण्डि कराले ।

तुम कैलास मांहि है गिरिजा, विलसी आनंद साथ सिंधुजा ।

स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी, मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी ।

विलसी सब मँह सर्व सरुपा, सेवत तोहिं अमर पुर भूपा ।

जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा ।

प्रात समय जो जन मन लायो, पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो ।

स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत, परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत ।

राज विमुख को राज दिवावै, जस तेरो जन सुजस बढ़ावै ।

पाठ महा मुद मंगल दाता, भक्त मनोवांछित निधि पाता ।

अन्नपूर्णा चालीसा दोहा

जो यह चालीसा सुभग, पढ़ि नावैंगे माथ ।

तिनके कारज सिद्ध सब साखी काशी नाथ ॥

।। इति अन्नपूर्णा चालीसा समाप्त ।।

अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

अन्नपूर्णा चालीसा के पाठ से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह पाठ विशेष रूप से घर में अन्न, धन और समृद्धि को आकर्षित करने वाला माना जाता है। माता अन्नपूर्णा को अन्न, पोषण और समृद्धि की देवी कहा जाता है, अतः उनके चालीसा पाठ से भक्तों को भूख और निर्धनता से मुक्ति मिलती है। यह पाठ मानसिक शांति, आंतरिक संतोष और आध्यात्मिक उन्नति में भी सहायक होता है। जो व्यक्ति आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे होते हैं, उन्हें नियमित रूप से अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और धनागमन के नए स्रोत खुलते हैं। इसके अतिरिक्त, यह पाठ ग्रहदोष निवारण और पारिवारिक कलह को समाप्त करने में भी सहायक सिद्ध होता है।

अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ किस दिन और किस समय करना सबसे शुभ माना जाता है?

अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने के लिए सबसे शुभ दिन सोमवार माना जाता है, क्योंकि यह दिन माता लक्ष्मी और अन्नपूर्णा देवी को समर्पित है। इसके अलावा, पूर्णिमा तिथि और नवरात्रि के दौरान भी इस चालीसा का पाठ करना विशेष फलदायी होता है। ब्रह्ममुहूर्त, यानी प्रातःकाल 4 से 9 बजे के बीच इसका पाठ करने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। यदि यह संभव न हो तो सूर्यास्त के समय या रात्रि में भी पाठ किया जा सकता है। विशेष रूप से दीप जलाकर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर, शुद्ध मन से किया गया पाठ शीघ्र फल देता है।

क्या अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करने से घर में धन, अन्न और समृद्धि बनी रहती है?

अन्नपूर्णा चालीसा का नियमित पाठ करने से घर में अन्न-धन और समृद्धि की वृद्धि होती है। यह पाठ सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है, जिससे घर में बरकत बनी रहती है। माता अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने से व्यक्ति को कभी भी अन्न की कमी नहीं होती, और उसका परिवार खुशहाल रहता है। जिन घरों में अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ किया जाता है, वहां दरिद्रता और आर्थिक तंगी दूर रहती है। साथ ही, इस पाठ से घर में सात्त्विकता और शुद्धता बनी रहती है, जिससे नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।

अन्नपूर्णा चालीसा में माता अन्नपूर्णा के कौन-कौन से स्वरूपों और लीलाओं का वर्णन किया गया है?

अन्नपूर्णा चालीसा में माता के विभिन्न स्वरूपों और लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसमें माता को अन्नपूर्णा के रूप में दर्शाया गया है, जो समस्त प्राणियों को अन्न प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त, उन्हें काशी की अधिष्ठात्री देवी और भगवान शिव की प्रिया के रूप में वर्णित किया गया है। माता के करुणामयी स्वरूप, दयालुता और भक्तों को तृप्त करने वाली उनकी दिव्य लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। चालीसा में यह भी बताया गया है कि कैसे माता अन्नपूर्णा ने स्वयं भगवान शिव को अन्न का महत्व समझाया और उन्हें भिक्षा प्रदान की।

अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करते समय किन नियमों का पालन करना चाहिए?

अन्नपूर्णा चालीसा का पाठ करते समय कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। पाठ करने से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। पाठ करने के स्थान को शुद्ध करना और दीपक जलाना शुभ माना जाता है। मन को एकाग्र कर श्रद्धा और भक्ति भाव से पाठ करना चाहिए। पाठ के दौरान सात्त्विकता बनाए रखना आवश्यक है, यानी मांसाहार और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति विशेष रूप से धन, अन्न या समृद्धि की प्राप्ति के लिए यह पाठ कर रहा है, तो उसे विधिपूर्वक माता अन्नपूर्णा का स्मरण करना चाहिए और अंत में आरती करके प्रसाद वितरण करना चाहिए।

निष्कर्ष

अन्नपूर्णा चालीसा न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह एक पवित्र माध्यम है जिसके द्वारा हम देवी अन्नपूर्णा से आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यह जीवन में अन्न, समृद्धि, शांति और संतुलन लाने का एक शक्तिशाली उपाय है। यदि आप भी जीवन में शांति और समृद्धि की कामना रखते हैं, तो अन्नपूर्णा चालीसा का नियमित पाठ करें और देवी अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य बनाएं।

ध्यान रखें, आस्था और श्रद्धा से किया गया कोई भी कर्म कभी निष्फल नहीं जाता। देवी अन्नपूर्णा की कृपा से आपका जीवन भी धन्य हो सकता है।

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